मत कहो,
कुछ मत कहो,
न शब्द चले न संगीत,
न कोई साज़ बजे न होंठ हिलें।
उठा लो बढ़ के
मेरे सामने की मेज़ से,
तश्तरियां, बोतलें गिलास,
ज़रा फिर से साफ़ करो
वो गर्द भरी कुर्सियां,
जो सजा राखी है मैंने बरसों से,
और जिनपे आज तलक सिर्फ...
तन्हाई बैठती है॥
इस चमकती सफ़ेद रौशनी को,
बुझा दो अब...
क्यूंकि ये मेरे चेहरे की बेबसी,
साफ़ साफ़ दिखाती है.
रात की इस गहराती ख़ामोशी में,
इस मध्हम ठंडी हवा पे चल के
कुछ आवाजें आती हैं अब भी...उफ़...
ज़रा इन खिडकियों को बंद कर दो,
की ये ख़ामोशी न टूटने पाए॥
अब ज़रा बनावो फिर से एक जाम,
और मेरी खातिर ,
ये अधखुले दरवाज़े भी बंद कर दो,
कल तक के लिए॥
मेरी तन्हाई में बहने दो,
जाम और अश्को के नमकीन नगमे,
अभी तो रात बाकी है...
कहाँ अभी किसी को मेरी याद है,
कोई नहीं ढूँढने आएगा मुझे यहाँ,
मैं खुद को खो चूका हूँ जहाँ..