Saturday, July 24, 2010

थोडा जीवन...

अधूरा सा है सब कुछ...
कोई गहराता अँधेरा हूँ मैं।
दौड़ रहे हैं सबलोग...
जाने क्यूँ ठहरा हूँ मैं॥

क्यूँ जो एक टीस सी है,
दिल से हटती ही नहीं...
पीड़ा की अमरबेल है कोई,
उम्र घटती ही नहीं॥

आंसूं खारे पानी से...
ज्यादा कुछ लगते नहीं,
दिल नमक का दलदल है...
फूल यहाँ उगते नहीं॥

तनहाइयों के दिन बरस,
मिल मिल के पत्थर बन गए...
सपनो के कोरे कागज़ पे,
पसीने रिस के अक्षर बन गए॥

बस एक तलाश है की...
एक हाथ बढ़ के थाम ले,
आंसू आँखों से पोंछ ले,
और शायद मेरा नाम ले...

वैसे महंगा लगता है,
पर सौदा सच में सस्ता है...
इस "शायद" और "सपने" के बीच,
थोडा "जीवन" तो बसता है...

Friday, July 23, 2010

एक कविता निराशा के नाम...

मुझे मुहब्बत है...
हाँ मैं मुहब्बत करता हूँ॥
और इसी में बेबस॥
दिन रात जीता मरता हूँ॥

इस मुहब्बत का हासिल कोई नहीं,
जानता हूँ मैं...
इसके दोगले चरित्र को
पहचानता हूँ मैं॥

साथ इसके चला हूँ,
पहले भी॥
ये बला ख़ुशी तो लाई...मगर॥
फिर वो तन्हाई...हाय तन्हाई...

थका, टूटा, हारा, गिरा,
फिर से पकड़ा उसी रस्सी का सिरा॥
उन्ही रास्तो पे फिर चला,
जाने कितने हादसों में पला॥

टूटे कांच की किरचें
आँखों में धंसी हैं,सपने बिखरे हैं॥
मगर फिर भी एक नए ख्वाब के,
जाने क्यूँ अक्स उभरे हैं..

हाँ, मुहब्बत है मुझे...
उन बेकार जानो से॥
जिन्होंने सुबह देखी नहीं॥
ज़मीं या आसमानों से॥

मुहब्बत मुझे उनसे भी है...
जिनके बेदाग रूह॥
बेस्वाद बिस्तरों पे सज सजके
उकता चुके..पर क्या करें॥

मुहब्बत तो एक फिकरा हैं न॥
भटकती बेचारी जान का॥
बस विरानो में गूंजती आवाज़ है ये॥
न कोई सिलसिला पहचान का॥

और हाँ..कमबख्त मुहब्बत
बिकती भी है॥
कम से कम दामो में॥
हर एक जगह..विरानो में दुकानों में॥

अरे हाँ...किस्सा बीच में ही छूट गया॥
की मुझे मुहब्बत है।
थोड़ी खुद से भी है...
झूठ नहीं बोलूँगा॥

तो! क्या करें...ज़माना पूछता है,,
और मेरे दिल में जैसे कांच सा टूटता है।

कभी सोंचता हूँ..खरीद लूं..
उस बे इमान ज़मीर को चल के॥
जिनके रास्तों में आजकल॥
नए प्यार के चिराग हैं जलते॥

पर क्या करूँ, कायर हूँ मैं
गुज़रे वक़्त की गलियों में भटका,
एक गरीब गुमनाम शायर हूँ मैं...

मेरी मुहब्बत बेकार है...
बीते कल के खाने की तरह॥
मेहमान जो आते हैं कभी,
तो लौट के जाने की तरह...

मगर मैं जानता हूँ,
इस दौर का सच भी पहचानता हूँ।
मुहब्बत तो बस एक खेल है यहाँ,,
जीत का और हार का॥

आंसूं और आँहो का मतलब
समय नए व्यापार का...

ये युग पाखंडी काल छली है॥
हर चेहरे पे है एक चमकीला पर्दा...
हर दिल एक संकरी तंग गली है...