Monday, March 26, 2018

तुम...

रंगों की रिमझिम में बेदाग़ खड़े हो,
नहीं मानते कोई भी त्योहार तुम

कुछ भी कभी भी बदल डालते हो
तुम्हीं हो ख़बर और अख़बार तुम

इंसाफ, धन रोटी सब चाकर तेरे
तुम्हीं बाज़ार हो और व्यापार तुम

पर ये सूखा लहू, ये आँसू के दाग़
किस जल से धोवोगे सरकार तुम

एक क़ता

वो शम्स आज जाने क्यूं महताब हो रहा है
एक ख़ार--दश्त फिर से शादाब हो रहा है
तेरा असर है ये कि बस एहतिमाल है मेरा
जो कुछ मैं पी रहा हूँ, सब शराब हो रहा है

.... 

शम्स - सूरज 
महताब - चाँद 
ख़ार--दश्त - कांटो का जंगल 
एहतिमाल - शंका, आशा 

Wednesday, March 21, 2018

मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी

जब पिघलकर स्वप्न मेरा,भोर में मिल जाएगा,
और सिलवटों में फंसा मेरा अक्स भी डराएगा,
तब तुम एक सजी चिता से फूल चुनने आओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

तुम वफ़ा के क़िस्सों औ' बातों से घबराना मत,
सड़कों, गलियों, बाग़, दुकानों से कतराना मत.
वर्ना तुम तन्हा जो हुई तो यादों से डर जाओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

वह कालचक्र तो सदा हीं निष्ठुर है, अशोक है,
किन्तु ह्रदय की वेदना का वाण भी तो अमोघ है,
उस वाण का लक्ष्य तुम,कब तलक बच पाओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

इस लोक या उस लोक, कहीं सुकूं मिल जाएगा,
पीड़ा का पर्वत ये घिसकर ख़ाक में मिल जाएगा.
मैं बनूँगा वृक्ष तो उसकी छाया में तुम समाओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

Tuesday, March 13, 2018

और चाहिए क्या !

सांस बस चलती रहे, और चाहिए क्या !
हर घर शमा जलती रहे,और चाहिए क्या.

ख़्वाब आते-जाते रहें, हों अच्छे या बुरे,
कुछ नींद मचलती रहे,और चाहिए क्या.

पाया, खोया, क्यूँ ये गुणा जमा का खेल,
माँ की दुआ फलती रहे,और चाहिए क्या.

कोख हो किसी की, हिन्दू कि मुसलमां,
बस बेटियां पलती रहें, और चाहिए क्या.