Saturday, May 28, 2011

लाल रंग...

रंग दे मुझको लाल रंग में।
चटक चमकीले लाल रंग में
फीके फीके हैं दिन रात।
छुप जाएँगे लाल रंग में॥

तू लाल रंग का बाना ला दे,
लाल रंग की पगड़ी दे...
जो लाल रंग में चीज़ न रंगे,
चोट तू उसको तगड़ी दे॥
वो जो स्याह सा है कुछ दिल में,
रंग दे उसे भी लाल रंग में॥

लाल रंग मेहँदी का भी है,
हाथों पे सजता है तेरे॥
लाल रंग में रंगा है ढोल,
आँगन में बजता है तेरे॥
सर्द सफ़ेद है मेरा बिस्तर,
तेरी सेज है,लाल रंग में॥

पर न सोंच की लाल रंग ये,
बस तेरा सरमाया है।
बस तेरे होटों पे सजने,
दूर कहीं से आया है॥
तुझपे हंसती है ये लाली,
गौर से देख लाल रंग में॥

लाल रंग माँगा था मैंने...
तुझसे लेकिन मिला नहीं।
मैं लाल हुआ था गुस्से में,
लेकिन अब कोई गिला नहीं॥
मैं खुद ढूंढ के देखूँगा की,
क्या है ऐसा लाल रंग में॥

मुझे दिखी है लाल रंग में,
लिपटी कोई लहराती हुई॥
लाल आँखों से मुझे घूरती,
मेरी तरफ ही आती हुई॥
वो है मेरी दोस्त बेबसी,
सजती है बस लाल रंग में॥

मुझपे हँसता मेरा साया,
वो भी सजकर लाल रंग में॥
कायर है तू देख वहां की,
कुछ नहीं रखा लाल रंग में।
वहां रूमानी रंग नहीं! बस,
खून ही बहता लाल रंग में॥

काली स्याह देख गरीबी,
भूख का नंगा रंग भी देख,
लाल हुआ है चोट जो खाके,
वो पिसते रोते अंग भी देख॥
देख जहाँ में रंग हैं कितने...
कहाँ छुपा है लाल रंग में॥

तेरा लाल रंग फर्जी है,
खुद में है बस खोया हुआ॥
तेरे दर्द का पेड़ हरा है,
तेरा ही था बोया हुआ॥
चल आंसू पोंछ ले, आगे बढ़,
क्या पायेगा लाल रंग में॥

वो लाल रंग जो प्यार का है,
वो लाल रंग जो प्यारा है॥
वो लाल है किसी के दर्द में डूबा,
कुछ अपना कुछ आवारा है॥
खो के खुद को पा ले दुनिया,
रंग जा असली लाल रंग में॥

चटक चमकीले लाल रंग में॥

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