Sunday, May 24, 2009

कहीं शाखों पे कुछ गुल मेहेरबा हुए हैं,
और कुछ तेरी जुल्फों में आके छुपे हैं॥
तेरी आंखों से कल जो बादल उडे थे॥
वो पलकों पे आके अचानक रुके हैं।
मैं उठ गया हूँ मगर अभी महफिलें जंवा हैं।
वही जाम वही सुरूर वही मस्तियाँ रवां हैं॥
कही कोई ग़मगीन सूरत नही है....
किसी को भी मेरी ज़रूरत नहीं है॥

सड़कें रोशन हैं,दुकाने जगमगा रहीं हैं।
चौराहों पे जवानियाँ नए गीत गा रही हैं॥
मुहब्बत के सूखे फूल से वायदों की तितलियाँ॥
एक-एक करके उडी जा रहीं हैं॥
सादगी सज़ा है,यकीन बदगुमानी है॥
सिमट गई किताबों में अब दोस्ती कहानी है॥
यहाँ पत्थर ही पत्थर हैं,मूरत नहीं है॥
किसी को भी मेरी ज़रूरत नहीं है...