Tuesday, September 13, 2016



अब बेहतर हूँ, शादाब हो गया हूँ मैं,
जब से थोड़ा सा ख़राब हो गया हूँ मैं.
 
सिफ़त मेरी कहाँ दिलों में उतरे अब,
बस लबों पे, "आदाब" हो गया हूँ मैं.
 

ग़ुरबत में दीवारें तो सारी गिर चुकीं,
बचा जो झूलता, मेहराब हो गया हूँ मैं.
 
कशीदगी ने कई बरसों यूँ बुना मुझे,
बुन-बुन के किमख़्वाब हो गया हूँ मैं.