धूल में अटा हुआ, स्वेद में सना हुआ,
धर्म पे अड़ा हुआ, भूख से तना हुआ,
इंसान कैसे कैसे दुनिया में रवां हैं,
कोई धिस के खाक तो कोई आइना हुआ॥
ज़ख्म सबके ज़ख्म, मर्ज़ सबके मर्ज़,
सबकी अपनी ख्वाहिशें, सबके अपने फ़र्ज़,
शर्म से कोई जिए कोई शर्म बेचता,
दोस्ती किसी को हक लगे तो किसी को क़र्ज़,
इंसान कैसे कैसे दुनिया में रवां हैं,
गीत गाते एक से, पर अपने अपने तर्ज़॥
भ्रष्ट सत्य, झूठ प्रीत, भ्रम दिलों का मेल,
जान जाये एक की तो दुसरे का खेल,
कोई कुर्सी से बंधा, कोई सब कुछ त्याग दे,
छल में कोई सफल, कोई सच कहे तो जेल,
इंसान कैसे कैसे दुनिया में रवां हैं,
कोई तार पर बैठा किसी की तनी गुलेल।
मिटटी बनती चाहतें, ज़रूरतें,परेशानियाँ,
शोर कहीं बहरा करे, कहीं मीलों वीरानियाँ,
ज़ज्बात लेके चलने वाले मूर्ख बन जाते,
कुर्बानियां हंसी बनी, इश्क सब कहानियां,
इंसान कैसे कैसे दुनिया में रवां हैं,
दौड़ते हांफते बुढ़ापे, रेंगती जवानियाँ॥
हसरतों, नाकामियों के चरखे में बुना हुआ,
भूल जाता हर सबक, लाखों दफे सुना हुआ,
दरख्तों से खड़े लोग जिनके पत्ते झड चुके,
ठूंठ है बचा मगर बुरी तरह घुना हुआ,
इंसान कैसे कैसे दुनिया में रवां हैं,
कोई घिस के खाक तो कोई आइना हुआ॥
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