Saturday, April 30, 2011

लानत है...

चमकती धूप अप्रैल की,
आँखों में गोंद जैसी लगती है॥
मद्धम हवा पार्क के पीपल को छेड़ती,
मीठी सी एक हरारत भरती है॥
कहाँ हैं मेरे पास लेकिन नींद,
कहाँ है आराम के वो बीते पल,
बस टीवी ... और
इतवार का रंगीन अखबार,
फिर ज़िन्दगी ख़ुद को बोतलों में ढूंढती है॥
कहाँ वक़्त है की मैं किसी के आंसू पोछूं
कहाँ वक़्त है किसी के दर्द बांटने का,
होंगे हज़ार दुःख और भी लोगों के पास,
मैं तो बंधा पड़ा हूँ,
दम नहीं अब खुद के फंदे काटने का॥
जलती रहे दुनिया हज़ार फसादों में,
चाहे रोटी के ग़म में लोग ज़हर पीते रहें,
मुझे तो बस मुबारक है मेरे दिल के रोग,
हम बेबसी में शराब पीते रहें,
तुने इश्क में दिए जो ज़ख्म जीते रहें॥
कितना कुछ है करने को,
कितने दर्द हैं मरने को...
मगर एक ज़रा से दर्द में कैसी मेरी हालत है,
लानत है...लानत है..

Tuesday, April 26, 2011

कहो...

कहो..आकर कहो...
थोडा और करीब आकर कहो,
मुस्कुराते हुए...
दांतों को भींचकर निचले होटों से...
शरमाते हुए कहो॥

कहो खूबसूरत, मद्धम सी...
खनकती हुई आवाज़ में...
जैसे धीमे धीमे सितार बजे...
कहो लफ्जों को गीत बनाकर,
पिरोकर किसी साज़ में॥

मैं ठहरा हुआ हूँ...
और..इंतज़ार में डरा हुआ हूँ।
जानता हूँ...उन होटों की हरकत...
जो कहना चाहती है....
पहचानता हूँ॥

इसीलिए शायद
इस रूखे इंतज़ार से...
ऊब रहा हूँ....और
एक बार फिर खारे पानी के...
एक जाने पहचाने दरिया में...
डूब रहा हूँ...

Friday, April 1, 2011

मेरी सबसे अज़ीज़ दोस्त के लिए जिन्होंने अनगिनत बार अपनी दुआओं से मुझे संभाला और संवारा है....

तू एक मौलसरी का पेड़ है जैसे,

फूल ही झड़ते हैं जब हवा झकझोरती है।

ग़म के भूत भी डरते हैं तुझसे बरबस...

तू जब मुस्कुराते हुए सबके ग़म बटोरती है॥


तू वहां मेरे लिए हरदम दिया जलाती है।

जहाँ अँधेरे मुझे रोज़ दम डराते हैं॥

तेरे चेहरे की झिलमिलाती झील में...

मेरी मायूसियों के नाव डूब जाते हैं॥


तुझे ग़म दिए हैं मैंने कई बार वैसे,

मेरे दिल में जमा है नमक अफ़सोस का॥

मगर तुने मुझे सिर्फ ख़ुशी ही बक्शी है,

मुझे याद है तेरे लबों पे दुआ और, चेहरा खामोश सा॥


तू ग़म के कितने कांटो में रहती बसती है,

खुशबूवाले गुलाबों का चटक रंग लिए,

घूमती रहती है रोज़ तूफानों में भी...

अँधेरे रास्तो पे... चिराग अपने संग लिए॥


मैं तेरी दुआओं के नरम पालने में,

किसी बच्चे की तरह किलकारियां भरता हूँ॥

तेरे फ़रिश्ता नुमा चेहरे पे मेरी आँखे हैं...

उस चेहरे पे उभरी हुई रगों से डरता हूँ॥


सोंचता हूँ, खुदा मुझे कभी तो वो कूवत देगा,

मैं तेरी ज़िन्दगी में थोड़ी सी मसर्रत भर दूं॥

तेरे ग़मों को रख लूं अपने दामन में,

तेरे ख्वाबों में सूकून और नींदों में राहत भर दूं॥