Sunday, May 6, 2018

वक़्त गुज़रता जा रहा

वक़्त गुज़रता जा रहा मंज़र बदलता हीं नहीं,
मुझ सा मेरा दिल अकेला,साथ चलता हीं नहीं.

आज़माइशों औ' मिन्नतों में उम्र तक गुज़ार दी,
वो चाँद एक पल मेरे छत पे टहलता हीं नहीं.

बरसों से है दिल में जमा एक अदद कोह-ए-ग़म*,
धूप आती जाती है, वो यख़** पिघलता हीं नहीं.

हर दिन कई नए पुराने मिलते हैं लोग खुशनुमा,
वो एक सूरत न दिखे तो दिल बहलता हीं नहीं.

पथ्थरों के शहर में अब आँख में पानी कहाँ,
चीखें गूंजती हैं पर किसी को खलता हीं नहीं.

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*कोह-ए-ग़म - mountain of pain and misery
** यख़ - cold/icy

दिल में एक मदारी रख

थोड़ी सी हयाथोड़ी इंकिसारी रख
कोई कुछ भी कहे, ये बीमारी रख

मिले मिले तेरा रक़ीब तुझको
तू खंज़र बाँध ले, पूरी तैयारी रख

अदा से मांग के मदद नहीं मिलती
खुलके सामनें अपनी लाचारी रख

सही चीज़ हर जगह पे बिकती है
किसी सड़क पे भी तहबज़ारी रख

मुश्किल से अब अच्छी नींद आती है
संभालकर आँखों की ख़ुमारी रख

पता नहीं कब सड़क घर बन जाए
जीना हो तो दिल में एक मदारी रख

ग़ज़ल

काग़ज़ काग़ज़, लफ्ज़ लफ्ज़ ग़म बांट देता हूं, 
हर ग़ज़ल में तेरा नाम लिखकर काट देता हूं. 

तुम परीशां जब भी हो मुझसे बातें कर लेना, 
मैं तो लफ्ज़ों से दिलों की खाई पाट देता हूं. 

बच्चे सा है ग़म ये चंचल, इक जगह न बैठेगा, 
कभी दुलारता हूं इसको, कभी मैं डांट देता हूं. 

मेरे घर आ जाना जब आँखों में बादल उतरें,
मैं नदिया बन बहती आँखों को घाट देता हूं.


Monday, March 26, 2018

तुम...

रंगों की रिमझिम में बेदाग़ खड़े हो,
नहीं मानते कोई भी त्योहार तुम

कुछ भी कभी भी बदल डालते हो
तुम्हीं हो ख़बर और अख़बार तुम

इंसाफ, धन रोटी सब चाकर तेरे
तुम्हीं बाज़ार हो और व्यापार तुम

पर ये सूखा लहू, ये आँसू के दाग़
किस जल से धोवोगे सरकार तुम

एक क़ता

वो शम्स आज जाने क्यूं महताब हो रहा है
एक ख़ार--दश्त फिर से शादाब हो रहा है
तेरा असर है ये कि बस एहतिमाल है मेरा
जो कुछ मैं पी रहा हूँ, सब शराब हो रहा है

.... 

शम्स - सूरज 
महताब - चाँद 
ख़ार--दश्त - कांटो का जंगल 
एहतिमाल - शंका, आशा 

Wednesday, March 21, 2018

मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी

जब पिघलकर स्वप्न मेरा,भोर में मिल जाएगा,
और सिलवटों में फंसा मेरा अक्स भी डराएगा,
तब तुम एक सजी चिता से फूल चुनने आओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

तुम वफ़ा के क़िस्सों औ' बातों से घबराना मत,
सड़कों, गलियों, बाग़, दुकानों से कतराना मत.
वर्ना तुम तन्हा जो हुई तो यादों से डर जाओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

वह कालचक्र तो सदा हीं निष्ठुर है, अशोक है,
किन्तु ह्रदय की वेदना का वाण भी तो अमोघ है,
उस वाण का लक्ष्य तुम,कब तलक बच पाओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

इस लोक या उस लोक, कहीं सुकूं मिल जाएगा,
पीड़ा का पर्वत ये घिसकर ख़ाक में मिल जाएगा.
मैं बनूँगा वृक्ष तो उसकी छाया में तुम समाओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

Tuesday, March 13, 2018

और चाहिए क्या !

सांस बस चलती रहे, और चाहिए क्या !
हर घर शमा जलती रहे,और चाहिए क्या.

ख़्वाब आते-जाते रहें, हों अच्छे या बुरे,
कुछ नींद मचलती रहे,और चाहिए क्या.

पाया, खोया, क्यूँ ये गुणा जमा का खेल,
माँ की दुआ फलती रहे,और चाहिए क्या.

कोख हो किसी की, हिन्दू कि मुसलमां,
बस बेटियां पलती रहें, और चाहिए क्या.