आवाज़ धीमी है कैसे खुदा के कान तक पहुंचे,
थोडा ज़ख्म और दे की चीख आसमान तक पहुंचे॥
ये कैसा सफ़र था की रहा रास्ता ही रास्ता,
कांटो पे चले और फ़क़त बियाबान तक पहुंचे॥
वो इश्क नहीं हो सकता जो भुलाने से मिट गया,
मुहब्बत का दर्द वो जो तेरी जान तक पहुंचे॥
अब सोंचता हूँ कोई रूमानी सी नज़्म लिखूं,
थोड़ी सी मसर्रत तो...अवाम तक पहुंचे॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
wonderful...!
ReplyDeleteloved it.
beautifully written
ReplyDelete