Saturday, October 16, 2010

प्रेम के मौसम

सूखे मौसम की सुस्ती में,
जब जब धरती जलती है।
मेरी अलसाती आँखों में,
तेरी कितनी यादें पलती हैं।

जब बारिश की रिमझिम में,
भीगी ये दुनिया हंसती है।
मेरी सिलती हुई दीवारें,
तेरी खुशबु को तरसती हैं।

बसंत की मद्धम सर्दी में,
सब बहके बहके लगते हैं।
मेरे अंदर कहीं विरानो में,
चन्दन के वन सुलगते हैं।

शरद की रातों में अक्सर,
प्रेम तड़पता गाता है।
सब दुबके चैन से सोते है,
मेरा चैन तो आता जाता है।

यूँ मौसम बीते, साल गए,
एक दिल फिर भी विराना है.
तू ठहरी न कुछ पल भी वहां,
जहाँ रोज़ का आना जाना है.