Friday, April 1, 2011

मेरी सबसे अज़ीज़ दोस्त के लिए जिन्होंने अनगिनत बार अपनी दुआओं से मुझे संभाला और संवारा है....

तू एक मौलसरी का पेड़ है जैसे,

फूल ही झड़ते हैं जब हवा झकझोरती है।

ग़म के भूत भी डरते हैं तुझसे बरबस...

तू जब मुस्कुराते हुए सबके ग़म बटोरती है॥


तू वहां मेरे लिए हरदम दिया जलाती है।

जहाँ अँधेरे मुझे रोज़ दम डराते हैं॥

तेरे चेहरे की झिलमिलाती झील में...

मेरी मायूसियों के नाव डूब जाते हैं॥


तुझे ग़म दिए हैं मैंने कई बार वैसे,

मेरे दिल में जमा है नमक अफ़सोस का॥

मगर तुने मुझे सिर्फ ख़ुशी ही बक्शी है,

मुझे याद है तेरे लबों पे दुआ और, चेहरा खामोश सा॥


तू ग़म के कितने कांटो में रहती बसती है,

खुशबूवाले गुलाबों का चटक रंग लिए,

घूमती रहती है रोज़ तूफानों में भी...

अँधेरे रास्तो पे... चिराग अपने संग लिए॥


मैं तेरी दुआओं के नरम पालने में,

किसी बच्चे की तरह किलकारियां भरता हूँ॥

तेरे फ़रिश्ता नुमा चेहरे पे मेरी आँखे हैं...

उस चेहरे पे उभरी हुई रगों से डरता हूँ॥


सोंचता हूँ, खुदा मुझे कभी तो वो कूवत देगा,

मैं तेरी ज़िन्दगी में थोड़ी सी मसर्रत भर दूं॥

तेरे ग़मों को रख लूं अपने दामन में,

तेरे ख्वाबों में सूकून और नींदों में राहत भर दूं॥

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