Friday, April 23, 2010

मेरे संग ज़रा चलो की बहुत देर हुई,
इन अंधेरों से निकलूँ, कि बहुत देर हुई।

न जाने कौन सा दिन कौन सी रातें हैं ये,
मैंने देखी नहीं सुबह कि बहुत देर हुई।

एक वादे पे बैठा रहा मुद्दतों नादान मैं,
वो वादा भी कब का टूटा,बहुत देर हुई।

कभी हाथ बढाया था,जाने किसकी तरफ,
बढ़के थाम लो तुम्ही, कि बहुत देर हुई।

आँखों में घुलने दो, नर्म ख्वाब रात भर,
अब जीना है मुझे फिर से, बहुत देर हुई.