Monday, February 18, 2013

पूछता है दिल कई बार मुझसे,
ऐसा क्या प्यारा है इस दुःख में,
क्यूँ सीने से लगाये इसे,
दिन रात तू तनहा फिरता है?

मैं कहता हूँ कुछ हल्का सा,
थोडा बेबस थोडा बरबस।।
लेकिन दिल को सब है पता,
वो मुंह पर मेरे हंस देता है।

कहता है दिल मुझसे की तू,
कायर है, तू डरता है,
तू दरिया पार खड़ा है प्यासा,
बिन डूबे ही मरता है।।

क्या है ऐसा आखिर  तू,
रो रो कर के पायेगा,
कौन सा ऐसा सपना है जो,
खुद तुझसे मिलने आएगा।।

चल उठ जा अब,कपडे बदल,
घर से बाहर आ कर देख,
खिली मिलेगी धुप तुझे भी,
बारिश में  मुस्का कर देख।।






वो दिल का बाग़ हरा था जो,
उजड़ा हुआ गिनता है दिन।।
कहता है तू भी ऐसे ही एक दिन...
छाया देकर तरसेगा, क्या पायेगा बाग़ बना जो।।।
शुष्क बर्फ की घाटी बन जा।।
घास फूस छाया विहिन।।
परिचय से दूर , पहचानविहीन।।

देख की कैसे कोई अचानक यूँ ही,
जीवन भर की ऊष्मा खो देता है।
कैसे कोई दुखी हुआ तो,
हँसते हँसते रो देता है,
ये सच सारे जान ले तू,
खुद पीड़ा के दिन गिन-गिन।
शुष्क बर्फ की घाटी बन जा
घास फूस छाया विहीन ..

गिनता रह तू रातों में बेबस,
दिल के रिसते दुखते छाले,
तुझे लगेंगी राते प्यारी,
बहुत चुभेंगे नरम उजाले,
किन्तु पीड़ा को शब्द न देना,
कई छल होंगे रंगीन,

शुष्क बर्फ की घाटी बन जा,
घास फूस छाया विहीन।।
परिचय से दूर, पहचान विहीन।।