रंगों की रिमझिम में बेदाग़ खड़े हो,
नहीं मानते कोई भी त्योहार तुम.
कुछ भी कभी भी बदल डालते हो,
तुम्हीं हो ख़बर और अख़बार तुम.
इंसाफ, धन औ रोटी सब चाकर तेरे,
तुम्हीं बाज़ार हो और व्यापार तुम.
पर ये सूखा लहू, ये आँसू के दाग़,
किस जल से धोवोगे सरकार तुम.
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