Monday, March 26, 2018

तुम...

रंगों की रिमझिम में बेदाग़ खड़े हो,
नहीं मानते कोई भी त्योहार तुम

कुछ भी कभी भी बदल डालते हो
तुम्हीं हो ख़बर और अख़बार तुम

इंसाफ, धन रोटी सब चाकर तेरे
तुम्हीं बाज़ार हो और व्यापार तुम

पर ये सूखा लहू, ये आँसू के दाग़
किस जल से धोवोगे सरकार तुम

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