Wednesday, March 21, 2018

मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी

जब पिघलकर स्वप्न मेरा,भोर में मिल जाएगा,
और सिलवटों में फंसा मेरा अक्स भी डराएगा,
तब तुम एक सजी चिता से फूल चुनने आओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

तुम वफ़ा के क़िस्सों औ' बातों से घबराना मत,
सड़कों, गलियों, बाग़, दुकानों से कतराना मत.
वर्ना तुम तन्हा जो हुई तो यादों से डर जाओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

वह कालचक्र तो सदा हीं निष्ठुर है, अशोक है,
किन्तु ह्रदय की वेदना का वाण भी तो अमोघ है,
उस वाण का लक्ष्य तुम,कब तलक बच पाओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

इस लोक या उस लोक, कहीं सुकूं मिल जाएगा,
पीड़ा का पर्वत ये घिसकर ख़ाक में मिल जाएगा.
मैं बनूँगा वृक्ष तो उसकी छाया में तुम समाओगी,
मैं जानता हूँ एक दिन तुम फिर मुझे बुलाओगी.

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