Monday, February 4, 2019

गीत


मेरे घर सजी महफ़िल है,
तुम सकोगी क्या?
मैं जो तराना बोलूंगा,
तुम गा सकोगी क्या?

तुमनें जिसको चाहा,
उसे तुमने पा लिया.
जो तुम्हारा नाहुआ,
उसेपा सकोगी क्या?

एक हुस्न है तुम्हारा,
एक हुस्न ख़ुदाई है.
बादल बनआसमां पे
तुम छा सकोगीक्या?

हमदर्दी और बात है,
हम कदमी कुछ और,
मेरे संग सूखीरोटियाँ
तुम खासकोगी क्या?

लोग बहुत हैं हर तरफ़
साफ़ तुम दिखती नहीं.
जो भीड़ चुकी है,
तुम हटासकोगीक्या?

मेरी आंखों में जो है,
दरिया नहीं सैलाब है.
इन उमड़ते पानियों में,
तुम नहा सकोगी क्या?

तुमने रास्ते बनाऐ थे,
पर रौशन नहीं किये.
इनअंधेरे रास्तों से,
कहीं जा सकोगी क्या?

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