Monday, February 4, 2019

ग़ज़ल


सोने चाँदी मिले नहीं, अश्कों के मोती खो दूं क्या?
इक ज़रासा दिलटूटा है, बस इतने में रो दूं क्या?

मेरी कश्ती नें तूफ़ां झेले, ज़मीं कहीं तब मिलीनहीं,
साहिल अब दिखने लगा तो ये नाव डूबो दूं क्या?

तेरी फ़ुरक़त से बहुत बड़े हैं ग़म दुनिया के,जान ले.
गुल खिला मेरे आँगन तो कांटे हर-सू बो दूं क्या?

दिल है वो आइना जिसपे जमी है तन्हाई की धूल,
तेरी सोहबत के पानी से अब आईना धो दूं क्या?



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