परचे पे लिख कर
नाम बढ़ा दिया होता,
काश मैंनें तुझको दिल
दिखा दिया होता.
तू यक लख़्त आई
सामनें तो पिघल गया,
वक्त देती तो ख़ुद
को पत्थर बना
दिया होता.
मैं आवारगी की धुंध
में इस कशमकश में
हूं,
तूने कांधे पे हाथ
रख के समझा
दिया होता.
आती ज़रूर ग़ज़ल सी
एक शब तेरी
गली,
तूनें मेरे लफ्ज़ों को
ग़र मौका दिया होता.
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