ज़ख़्म छू भर दिया
और आराम है,
शायद उसका चारागरी का
काम है.
पहले पहल कुछ बेख़ुदी
सी देती थी,
अब बस शराब नाम
की बदनाम है.
मुद्दतों
बाद दावत का मज़ा
आएगा,
सुना फ़र्श़ पे बिठानें
का इंतज़ाम है.
इक नज़र में फ़ना
होके क्या मिला,
वो क्या बताएगा जो
ख़ुद क़ुर्बान है.
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