ना करुँगी मुहब्बत, ये
कहती रही,
मेरी ख़ता,बेवफ़ाई भी
सहती रही.
इन आँखों में पानी
मिला हीं नहीं,
नदी बरसों यूँ पलकों
से बहती रही.
छत सितूनों पे खड़ा
मुकम्मल रहा,
पर दिवार थी सीली
वो ढहती रही.
मेरा दिल है वीराँ,
ये सबको बता,
वहाँ दुनियाँ से छुपके
तू रहती रही.
No comments:
Post a Comment