मेरे घर सजी महफ़िल
है,
तुम आ सकोगी
क्या?
मैं जो तराना बोलूंगा,
तुम गा सकोगी क्या?
तुमनें जिसको चाहा,
उसे तुमने पा लिया.
जो तुम्हारा ना हुआ,
उसे पा सकोगी क्या?
एक हुस्न है तुम्हारा,
एक हुस्न ए ख़ुदाई
है.
बादल बन आसमां पे
तुम छा सकोगी क्या?
हमदर्दी
और बात है,
हम कदमी कुछ और,
मेरे संग सूखी रोटियाँ
तुम खा सकोगी क्या?
लोग बहुत हैं हर
तरफ़
साफ़ तुम दिखती नहीं .
जो भीड़ आ चुकी
है,
तुम हटा सकोगी क्या?
मेरी आंखों में जो
है,
दरिया नहीं सैलाब है.
इन उमड़ते पानियों में,
तुम नहा सकोगी क्या?
तुमने रास्ते बनाऐ थे,
पर रौशन नहीं किये .
इन अंधेरे रास्तों से,
कहीं जा सकोगी क्या?