Tuesday, November 29, 2016

गीत

तुम युग्माें की बात कराे, मैं एकाकी चलता हूँ,
तुम हीं जीवन जीती हाे, मैं ताे केवल पलता हूँ.
चेहरा तेरा चाँद सरीखा, पथ में झड़ते रहते तारे,
मैं भी सूरज जैसा ताे हूँ, किन्तु केवल जलता हूँ.

जाने कैसे तुम जूड़े में रिश्ते बाँध के चलती हाे,
आैर मैं घर या बाहर, बस आँखाें में खलता हूँ.
तुम बसंत की पहली काेंपल, सब राह तकें तेरी,
मैं बरमासी जंगली बूटी, हर माैसम में फलता हूँ.

हर दिन दिखती हाे आैर हर दिन नई लगती हाे,
विस्मित मैं तुम्हें देख, बस आँखाें काे मलता हूँ.
तुमने सुलगा दी प्रेम ज्याेति यूँ मेरे बेकल मन में,
मैं माेम ह्रदय लेके अपना, थाेड़ा थाेड़ा गलता हूँ.

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