Tuesday, November 15, 2016

बैठी रहती है....

आज दिल में एक वीरानी बैठी रहती है.
भूले किस्से, बात पुरानी बैठी रहती है.
खुशी के गीत सुनता हूँ, भूल जाता हूँ,
पीड़ा की हर एक कहानी बैठी रहती है.

वही मार्ग है प्रेम का, कांटाें तीराें वाला,
क्यूँ कांटाें पे टिकी जवानी बैठी रहती है?
जहाँ हाथ छाेड़ गये कितने, कितनी बार,
उसी जगह क्यूँ एक दिवानी बैठी रहती है?

इसी जगह था घर वाे, जल के खा़क़ हुआ,
लाशाें की एक गंध पुरानी बैठी रहती है,
ख़त्म हुए जल के जहाँ राैशन करने वाले,
अब साये में धूप सुहानी बैठी रहती है.

क्यूँ मीठी बाेली खाे दी सबने, याद नहीं,
हर जिह्वा पे कड़वी बानी बैठी रहती है.
नर्म बिस्तर पर रात रात जागे है दुनियाँ,
बरामदाें में नीन्द सुहानी बैठी रहती है.

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