Thursday, November 3, 2016

ग़ज़ल

न माैत आती है, न जिया जाए है,
भूल पाऊँ, न नाम लिया जाए है.

मशहूरियत का गु़माँ हाेता है अब,
ज्यूँ ज्यूँ काेई बदनाम किया जाए है.

हाय तिश्नगी और आब मय्यसर नहीं,
अब न ज़हर, न जाम पिया जाए है.

वाे थक गया दाे चार मेरी बात सुन,
जाे बरसाें मुझे इल्ज़ाम दिया जाए है.

समझेगा कब तू मुफ़लिसी के मायने,
कि हर राेज़ फटी जेब सिया जाए है?

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