Tuesday, August 23, 2016

ग़ज़ल


हर सुबह बे-नियाज़ और शाम सोगवार,
हयात बे-ज़ायका, बीते कल का अख़बार.

इश्क में बाज़ार और बाज़ार में ग़ुरबत,
मिला हुस्न-ओ-जमाल पाया रोज़गार.

सब का दर्द अपना, ख़ुद का ग़म गुनाह,
क्या-क्या सिखा गए बे-अमली बुज़ुर्गवार.

बेचतें हैं ईल्म आजकल ऊँचे दाम पर,
पुरानें सफ्हात वही, बस ज़िल्द शानदार.

ऊँची नौकरी बेसाख़्ता मज़दूरी बन गई,
 को दिन आज़ादी, को दिन ईतवार.

ज़रूरी है


राख़ में चिन्गारी रहे, ये ज़रूरी है,
हिम्मत में लाचारी रहे ये ज़रूरी है.

हर चीज़ हवा में उड़े अच्छा नहीं ये,
इमान कुछ भारी रहे, ये ज़रूरी है.

हूकूमत जीने नहीं देगी ये रिवायत है,
पर मुखा़लफ़त जारी रहे ये ज़रूरी है.

जो डर हटा तो जानवर घर में घुसेंगे,
कहीं कहीं पे शिकारी रहे ये ज़रूरी है.

मय छोड़ी तो अहबाब घर नहीं आते,
थोड़ी पीने की बीमारी रहे ये ज़रूरी है.

कमबख़्त जवां क्यू़ं हुई बेटी की जात,
अब बच के बेचारी रहे, ये ज़रूरी है.

वो जो कहे़ं वो सच, हमें बोलना मना,
कुछ तो रायशुमारी रहे, ये ज़रूरी है.

सदाओं के उस पार कोई छूट गया है


सदाओं के उस पार कोई छूट गया है,
और आवाज़ का हर पुल भी टूट गया है.

मानूस हुआ दिल जिसपे वो तिलिस्म था,
छुआ तलक नहीं मगर सब लूट गया है.

ज़ख़्म--हिज़्र में चार रातें बेकली की थीं,
फ़िर वो ज़ख़्म पका और अब फूट गया है.

कौस--कज़ा पे एक बैरूनी सी रंगत है,
मेरे आसमाँ से आजकल वो रूठ गया है.

किसको मतलब है

तुम सुधरो कि न सुधरो, किसको मतलब है.
कमाओ, मांगो या लूटो, किसको मतलब है.
करो किसी की मदद या बस खुदगर्ज़ी पालो,
अपना बुत ख़ुद लगवा लो, किसको मतलब है.

एक तुम्हारी बात रहे, बाकी सब बकवास,
विरोध करे, उसे उठवा लो, किसको मतलब है.
विनाश के बीज बिखेरो सबके खेतों में,
मीठे फ़ल सारे रखवा लो, किसको मतलब है.

शतरंज की बिछी बिसात, तुम कैसे भी जीतो,
खेल तुम्हारा साफ़ नहीं, किसको मतलब है.
जग भोगो और मिटा दो जो न भोग सको,
सत्ता, शक्ति, धन बोले तो किसको मतलब है.

अहंकार हो अलंकार, छल बल बने तुम्हारा,
तुम पूर्व को पश्चिम बोलो, किसको मतलब है,
अवाम ने वैसे ही रेत पे लिखी फरियादें,
नदी मिटाये, तुम मिटा दो, किसको मतलब है.