Wednesday, March 13, 2013

kash...

काश .... कि मेरी सोहबत से,
कुछ तेरा मुकद्दर खिल जाये,
काश की मुझ से खो कर के,
तू खुद से  फिर मिल जाये।

तेरे सुकून की खातिर मैं,
रोज़ फातिहा  पढ़ता रहूँ ,
काश दुआ भूचाल सी हो,
तेरे दर्द का परबत हिल जाये.

तेरे कंधो पर जो हाथ पड़े,
वो हाथ मुहाफ़िज़ हो तेरा,
काश की तुझको जो कोसे,
वो ज़ुबा उसी दम छिल जाये।

नूर तेरे चेहरे से उड़कर,
हर शय को शादाब करे,
काश की तू छू ले जिसको,
वो चाक  ए गरिबा सिल जाये।

मैं चाहे रहूँ , की चाहे मरूं,
तेरी निस्बत की लाज रहे,
काश की बस फिर दर्द न हो,
किसी राह तू फिर न मिल जाये।।

काश…

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