मुझसे कहाँ तू खो गया,
बहुत जागा था शायद, सो गया.
लिपट के मुझसे रहता था.
कहाँ कभी ग़म कहता था.
इस बेपनाह शोर में तू मौन था.
अब समझा है दिल ने, तू कौन था.
लगता है आज भी तू मुझसे लड़ेगा,
मेरे साथ ही घर की सीढ़ियां चढ़ेगा,
परछाइयों के पार तू दुबका हुआ,
मुझपे लपकने को है ठिठका हुआ.
मेरी हंसी की पोटली तू साथ ले गया,
जिसपे फिसलता था, वो हाथ ले गया.
मगर तू है मेरे ही आस-पास,
नहीं मिटा सकता कोई तेरी सुवास.
शाम जैसे ही दरवाज़े पे आती है,
वही कांसी दो आँखें चमक जाती हैं.
मेरी सदाओ में तेरा वजूद है.
मेरे लिए हर वक़्त तू मौज़ूद है.
बहुत जागा था शायद, सो गया.
लिपट के मुझसे रहता था.
कहाँ कभी ग़म कहता था.
इस बेपनाह शोर में तू मौन था.
अब समझा है दिल ने, तू कौन था.
लगता है आज भी तू मुझसे लड़ेगा,
मेरे साथ ही घर की सीढ़ियां चढ़ेगा,
परछाइयों के पार तू दुबका हुआ,
मुझपे लपकने को है ठिठका हुआ.
मेरी हंसी की पोटली तू साथ ले गया,
जिसपे फिसलता था, वो हाथ ले गया.
मगर तू है मेरे ही आस-पास,
नहीं मिटा सकता कोई तेरी सुवास.
शाम जैसे ही दरवाज़े पे आती है,
वही कांसी दो आँखें चमक जाती हैं.
मेरी सदाओ में तेरा वजूद है.
मेरे लिए हर वक़्त तू मौज़ूद है.
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