Monday, February 18, 2013

वो दिल का बाग़ हरा था जो,
उजड़ा हुआ गिनता है दिन।।
कहता है तू भी ऐसे ही एक दिन...
छाया देकर तरसेगा, क्या पायेगा बाग़ बना जो।।।
शुष्क बर्फ की घाटी बन जा।।
घास फूस छाया विहिन।।
परिचय से दूर , पहचानविहीन।।

देख की कैसे कोई अचानक यूँ ही,
जीवन भर की ऊष्मा खो देता है।
कैसे कोई दुखी हुआ तो,
हँसते हँसते रो देता है,
ये सच सारे जान ले तू,
खुद पीड़ा के दिन गिन-गिन।
शुष्क बर्फ की घाटी बन जा
घास फूस छाया विहीन ..

गिनता रह तू रातों में बेबस,
दिल के रिसते दुखते छाले,
तुझे लगेंगी राते प्यारी,
बहुत चुभेंगे नरम उजाले,
किन्तु पीड़ा को शब्द न देना,
कई छल होंगे रंगीन,

शुष्क बर्फ की घाटी बन जा,
घास फूस छाया विहीन।।
परिचय से दूर, पहचान विहीन।।








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