Tuesday, September 21, 2010

यादो से अब दिल बहलता नहीं

आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।
मेरी गली के बच्चे गुमसुम हुए हैं,
पेडो पे झूले भी खाली पड़े हैं॥
नई कलियों में खुशबु उगाये न उगती॥
सुबह शाम हालाँकि माली पड़े हैं॥
वो नुक्कड़ की दादी का सब्जी का थैला,एक शाम भी मुझसे संभलता नहीं।
आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।
सुबहे तनहा और शामें अकेली।
प्यासे परिंदे रोज़ खिड़की पे उतरें। रात खाने की मेज़ पर तेरे चहेते,
एक साथ बैठते हैं मगर बिखरे बिखरे॥
मैं भी लाता हूँ हर दिन मिठाई के डिब्बे एक बच्चा भी लेकिन मचलता नहीं,
आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।
गर्द कपड़ो पे मेरे छाने लगी है॥
कंघी और मोजे कल सड़क पे मिले॥
बालकनी में मुरझाती बेली की कलियाँ...
आके पानी में रख दो तो फ़िर से खिले॥
कलेंडर के पन्ने हर दिन पलटता,दिन लेकिन फ़िर भी बदलता नहीं।
आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।
गुस्सा,नफरत,जलन हिकारत॥
सब नामो से मुहब्बत अब भारी हुई है.
मुझे हक है एक मुआफी का तेरे।
माना मुझसे गलतियाँ सारी हुई हैं॥
वो दिल में जो जमा है अफ़सोस का नमक,दिन रात रोके भी पिघलता नहीं।
आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।

1 comment:

  1. गुस्सा,नफरत,जलन हिकारत॥
    सब नामो से मुहब्बत अब भारी हुई है.

    बहुत ही बढ़िया लगा पढ़कर ........

    यहाँ भी आये एवं कुछ कहे :-
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