आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।
मेरी गली के बच्चे गुमसुम हुए हैं,
पेडो पे झूले भी खाली पड़े हैं॥
नई कलियों में खुशबु उगाये न उगती॥
सुबह शाम हालाँकि माली पड़े हैं॥
वो नुक्कड़ की दादी का सब्जी का थैला,एक शाम भी मुझसे संभलता नहीं।
आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।
सुबहे तनहा और शामें अकेली।
प्यासे परिंदे रोज़ खिड़की पे उतरें। रात खाने की मेज़ पर तेरे चहेते,
एक साथ बैठते हैं मगर बिखरे बिखरे॥
मैं भी लाता हूँ हर दिन मिठाई के डिब्बे एक बच्चा भी लेकिन मचलता नहीं,
आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।
गर्द कपड़ो पे मेरे छाने लगी है॥
कंघी और मोजे कल सड़क पे मिले॥
बालकनी में मुरझाती बेली की कलियाँ...
आके पानी में रख दो तो फ़िर से खिले॥
कलेंडर के पन्ने हर दिन पलटता,दिन लेकिन फ़िर भी बदलता नहीं।
आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।
गुस्सा,नफरत,जलन हिकारत॥
सब नामो से मुहब्बत अब भारी हुई है.
मुझे हक है एक मुआफी का तेरे।
माना मुझसे गलतियाँ सारी हुई हैं॥
वो दिल में जो जमा है अफ़सोस का नमक,दिन रात रोके भी पिघलता नहीं।
आ जाओ ज़रा तुम एक बार फ़िर से,यादो से अब दिल बहलता नहीं।
Tuesday, September 21, 2010
प्यार के आर पार
प्यार के इस पार हूँ मैं, प्यार के उस पार तुम,
बीच का दरिया है गहरा, न पार मैं न पार तुम ।
प्यार एक चलती सड़क है, इसके कोलाहल को सुन,
उसपे कोई रुकता नहीं, रफ़्तार मैं,रफ़्तार तुम।
प्यार कागज़ पे छपा, प्यार कुछ शब्दों में ग़ुम
कहने को साथ हैं मगर, खबर मैं, अख़बार तुम।
प्यार तलवारों की जंग, जंग की चीखे भी सुन,
प्यार ही घायल है रण में, न जीत मैं, न हार तुम।
प्यार की बोली लगी है, यूँ प्यार के सपने न बुन,
है हस्ती तो आ खरीद ले, बाज़ार मैं, बाज़ार तुम।
प्यार के इस पार हूँ मैं, प्यार के उस पार तुम॥
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