Monday, May 10, 2010

मिट जाना चाहता हूँ.

टुकड़े टुकड़े जोड़ रहा हूँ,
बस एक तेरी तस्वीर बनाना चाहता हूँ.

चिपका पड़ा हूँ सूखी मिटटी सा झील के कगार पे,
तुम टूट के बरसो सावन सा...
घुल के बह जाना चाहता हूँ।

अंजुली भर गर्व था,हथेलियों से रिस गया,
बचा कुछ अभिमान भी था,
जीवन की सड़क पे जूते सा घिस गया।
अब बची है बस वो आस, की तुम शायद समेट लोगी,
सूखे फूल से झरती पंखुडियां...

मै गहन रात्रि में बिन प्रकाश,
खुद दिए सा जलता हूँ.....
तुम फूटो सुबह का सूर्य बनके....
मै बुझ जाना चाहता हूँ।

एक इबारत लिख दो नयी,
चटक रंगों से जीवन के कागज़ पर,
मै उस कागज़ का नीरस, श्वेत विस्तार लिए...
मिट जाना चाहता हूँ॥

टुकड़े टुकड़े जोड़ रहा हूँ,
बस एक तेरी तस्वीर बनाना चाहता हूँ.

2 comments:

  1. एक इबारत लिख दो नयी,
    चटक रंगों से जीवन के कागज़ पर,
    मै उस कागज़ का नीरस, श्वेत विस्तार लिए...
    मिट जाना चाहता हूँ॥

    saraahniy prayaas ...badhaai swekaare

    word verification hata de ..time kharaab karta hai

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  2. Adbhut......alaukik
    Lekani aapki...
    kash ham aapke karib hote
    lekhani aapki uda lete

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