Monday, May 3, 2010

अब कहाँ चलें,
अब कहाँ रुकें।
कहाँ वो आशियाँ,
कहाँ वो वादियाँ॥

सब लोग चुप हैं...
सब परेशां,
सब हैरान हैं,
कहाँ कहकशां!

खुद में खोये सभी,
ख़ुदा रूठा हुआ॥
एक डर हर सु,
दिल में बैठा हुआ.

काली आंधियां चले,
तेजाब बरसता॥
कही तसल्ली नहीं,
हर शख्स तरसता॥

किस आबो हवा में,
प्यार लेके चले?...
हर वक़्त,हर जगह॥
कब तक जलें??

चलो कहीं रुक जाएँ,
थक चुके चलके..!
कितने आंसू तेरे मेरे,
रात दिन छलके!!!

1 comment:

  1. रचना बहुत अच्छी है ....अछे भाव लिए हुए ..पढ़कर अच्छा लगा .....परन्तु ...रुकना नहीं है ...चलते ही रहना ...थकान ज्यादा स्थायी नहीं रहेगी ...और अब तो हमारी शुभकामनाये आपके साथ जो है

    http://athaah.blogspot.com/

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