एक ह्रदय है आकुल व्याकुल समय की सीमाओं से दूर,
पल में हँसता गाता है फ़िर पल में टूट के होता चूर॥
कितने सपने स्वच्छ मनोरम
सुंदर रंगों से भरपूर,
इस पल दोनों हाथ लुटाता
और अगले पल मौन,मजबूर।
कभी जगत को साथ हंसाये,
कभी बने निष्प्राण,क्रूर,
जब भी घावों को मरहम
देता ख़ुद पाता है एक नासूर।
उसकी पीड़ा कौन सुने अब
अपने आप में सब मजबूर,
रोली चन्दन न बन पाया,
बनने को सक्षम था सिन्दूर,
वही ह्रदय है आकुल व्याकुल, समय की सीमाओं से दूर..