Wednesday, June 3, 2009
क्यूँ मातम करो मेरा,तुम खुश हो सही है मैं जो रंग ज़माने का न समझा,ये रंग वही है। गुजरी हुई ज़िन्दगी के हादसों से,क्यों आने वाला कल लहुलुहान हो! यही तरीका सही है की तुम बढे चलो और पहुँचो जहाँ फ़िर ज़िन्दगी जवान हो। थोडा ग़म भी हो तुम्हे तो कोई बात नहीं, थोड़े ग़म से खूबसूरती और खिलती है॥ मेंहदी का रंग सुर्ख लाल होता है, जब हीना को पत्थर की चोट मिलती है। तो इन कथ्थई आंखों में फ़िर से काजल भरो... और बालों में मोगरे की महकती लड़ियाँ डालो॥ होटों पे लाली भरो,और मलमल का रंगीन दुपट्टा डालो, चेहरे पे नया नूर और नजरो में नए सपने पालो। हजारों दिल तुम्हारी राहों में अब भी धड़कते हैं॥ चल के ज़रा उन लडखडाते कदमो को संभालो॥ मेरा क्या है!मेरी भी सांसे तो आख़िर चलती ही रहेंगी॥ और फ़िर कौन यहाँ किसकी खातिर जान लुटा देता है? हाँ!कुछ रिश्ते ज़रूर रेत के घरौंदे से होते हैं॥ जिन्हें हालातो का समंदर मिटा देता है। जो एक मैं नही तो क्या हुआ,तुम खुश हो सही है॥ मैं जो रंग ज़माने का न समझा,ये रंग वही है...!!
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