बाहर से मुझे पत्थर -ओ -परबत की तरह देख॥
भीतर से मुझे फूटते दरिया की तरह मिल,
जो अलग भी हों ज़िन्दगी के रास्ते तो क्या!
सागर में गिरती मीठी नदिया की तरह मिल।
पतझर की रुत में उंघते पलाश की तरह,
कहीं दिखू तो मुझे लरजते बादल की तरह मिल।
इन मतलबी रिश्तों के कांटो के जंगल में,
तू खुशबु बिखेरते हुए संदल की तरह मिल॥
ये कशमकश में रोज़ की पिसता हुआ शहर,
इस शहर को दिल से तू भले नश्तर की तरह मिल,
मगर चुभने की वो अदा किसी कोने में दफन कर,
मुझे मोम से बने हुए खंजर की तरह मिल॥
तपते हुए सूरज की तरह जो रहूँ कभी,
तू आगोश में ले मुझको एक साहिल की तरह मिल,
किसी रोज़ गर ये ज़िन्दगी ज़ख्म बन जाए,
सिर्फ़ तुझको इजाजत है तू कातिल की तरह मिल.