Wednesday, December 30, 2015

भीड़

"ज़रा चलो मेरे साथ,"
बस...  इतना कहा था मैंने
धीमे से, शराफत से,
और एकदम से,
वो शख्स दूर गया, कुछ बोला सबसे,
और जल्द ही,
सारी भीड़ छंट सी गयी.

फिर कानाफूसी,
घूर के देखने लगी कुछ लड़कियां,
कुछ लड़के आँखे दिखाने लगे।
एक सवाल था सबके चेहरे पर,
"कौन है ये सरफिरा ?"
"कोई गुंडा, पागल?"
"या, रेपिस्ट हुआ तो?"
"कैसे साथ चलने को कह रहा था,"
"कमीना,"

"हाय राम क्या करूँ अब?"
"पुलिस को फोन??"
"या... खुद ही ???"
"नहीं.  ये सेफ नहीं होगा."
"सबसे सेफ है, "
"यहाँ से चुपचाप खिसक लेना."

सब सवाल देख  रहा था मैं,
उन सभ्य लोगों के सहमे चेहरों पर,
और फिर मुझसे नहीं  रहा गया,
छँटती हुई उस भीड़ को देखा,
और आखरी बार चीख कर कहा,
"अरे सुनो तो, साथ चलो मेरे,"
"वहां, सड़क की दूसरी ओर,"
"वहां एक लड़की, अकेली ज़ख़्मी,"
"बेहोश पड़ी है, मदद कर दो प्लीज,"
"उसे अस्पताल ले जाना हैं...."

मगर,
मेरा पहला शराफत वाला प्रयास,
घातक निकला,
भीड़ अब तक काफी दूर जा चुकी थी.
शरीफ लोगों की भीड़.   

Thursday, November 26, 2015

ये वक़्त.....

आँखें तेरी क्यों बुझी सी हैं आजकल?
वो जो हज़ार चिराग करती थी रोशन,
क्यों दिखती है आज दुनिआ भर की थकन, ऊब-
उन पेशानियों पर जिन्हे ख़ुशी कभी खुद चूमती थी?

तेरी हथेलियों को क्या हुआ है?
क्यों ये खुरदरी सी हो गयी है?
कभी इनमे आइने  सी चमक थी,
जिनमे मेरा अक्स दीखता था.

और तेरे होंठ क्यों सूखे, पीले, बेजान से हैं?
इनकी सुर्खी तो शर्मा देती थी फूलो को भी.

ये तुझे क्या हुआ है,
ये मुझे क्या हुआ है,
मैं भी टूटे पत्ते सा क्यों हूँ?

मैं तब भी चाहता था तुझे, और
आज भी तू मेरी ही है.,

मगर वक़्त किसी का सगा नहीं,
किसी से उसको प्यार नहीं,
हमें ये वक़्त मिटाने आया है,
ये प्यार चुराने आया है,

यही वक़्त हमारा रक़ीब है बस,
कोई और कुसूरवार नहीं...

ये वक़्त हमारे प्यार से,
हमारे सामने ही खेलेगा
ये तुझ पे, मुझ पे हँसता है,
ये जान हमारी ले लेगा। ...