सहर क्या है, धूप की चुभन,
भाग दौड़, परेशानियाँ...
रात क्या है, यादों की जलन,
वीरानियाँ,वीरानियाँ।
टूटता हूँ, समेटता हूँ॥
फिर से टूट जाता हूँ,
रात-दिन दौड़ता रहता हूँ,
मगर पीछे छूट जाता हूँ.
ये छूटना तकदीर है,
बेकार हैं, हैरानियाँ॥
ये हारना सबक है...
मेहरबानियाँ,मेहरबानियाँ।
घूमता हूँ, शब्-ओ-सहर,
उम्मीदों के पहनके चीथड़े,
ख्वाबों के फूल बासी हैं,
कोई तितली उनपे क्यों उड़े॥
सुबह के हाथ छोटे हैं, मगर
लम्बी हैं,काली परछाईयां,
हर तरफ भीड़ बेशुमार पर,
तन्हाईयां,तन्हाईयां.....
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Shriman Tanhaiji, Aajkal log tanhai ke chakkar me barbad ho rahe hai,kabhi dusron ka sath bhile liya kijye. Vaise kavita Achhi Hai.
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