Sunday, June 13, 2010

तन्हाईयां

सहर क्या है, धूप की चुभन,
भाग दौड़, परेशानियाँ...
रात क्या है, यादों की जलन,
वीरानियाँ,वीरानियाँ।

टूटता हूँ, समेटता हूँ॥
फिर से टूट जाता हूँ,
रात-दिन दौड़ता रहता हूँ,
मगर पीछे छूट जाता हूँ.

ये छूटना तकदीर है,
बेकार हैं, हैरानियाँ॥
ये हारना सबक है...
मेहरबानियाँ,मेहरबानियाँ।

घूमता हूँ, शब्-ओ-सहर,
उम्मीदों के पहनके चीथड़े,
ख्वाबों के फूल बासी हैं,
कोई तितली उनपे क्यों उड़े॥

सुबह के हाथ छोटे हैं, मगर
लम्बी हैं,काली परछाईयां,
हर तरफ भीड़ बेशुमार पर,
तन्हाईयां,तन्हाईयां.....

1 comment:

  1. Shriman Tanhaiji, Aajkal log tanhai ke chakkar me barbad ho rahe hai,kabhi dusron ka sath bhile liya kijye. Vaise kavita Achhi Hai.

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